Sharab Hindi Shayari
जाहिद ने मैकशी की इजाज़त तो दी मगर,
रखी है इतनी शर्त खुदा से छुपा के पी।
मैं समझता हूँ तेरी इशवागिरी को साकी,
काम करती है नजर नाम पैमाने का है।
एक पल में ले गई मेरे सारे ग़म खरीद कर,
कितनी अमीर होती है ये बोतल शराब की।
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी,
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी हो शराब में।
ग़मे-दुनिया में ग़मे-यार भी शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें।
निगाहे-मस्त से मुझको पिलाये जा साकी,
हसीं निगाह भी जामे-शराब होती है।