Hindi Shayari with Attitude
जमींर हमसे बेचा ना गया,
वरना शाम तक अमीर हो जाते,
वाकिफ़ तो हम भी हैं, मशहूर होने के तौर तरीकों से,
पर ज़िद तो हमें अपने अंदाज से जीने की है।
अपनी ही तरह से परेशान है हर कोई,
इस तपती धूंप के लिए कोई दरख़्त नहीं है,
किसी के पास खाने के लिये रोटी नहीं है,
और किसी के पास रोटी खाने का वक़्त नहीं है!
हमें शायर समझ के यूँ नजर अंदाज मत करिये,
नजर हम फेर ले तो हुस्न का बाजार गिर जायेगा।
हमारी हैसियत का अंदाज़ा तुम ये जान के लगा लो,
हम कभी उनके नहीं होते जो हर किसी के हो गए।
मेरे दुश्मन भी मेरे मुरीद हैं शायद,
वक़्त-बेवक्त मेरा नाम लिया करते हैं,
मेरी गली से गुजरते हैं छुपा के खंजर,
रुबरू होने पर सलाम किया करते हैं।
हालात के कदमों पर समंदर नहीं झुकते,
टूटे हुए तारे कभी ज़मीन पर नहीं गिरते,
बड़े शौक से गिरती हैं लहरें समंदर में,
पर समंदर कभी लहरों में नहीं गिरते।
महबूब का घर हो या फरिश्तों की हो ज़मी,
जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा।
जुबां पर मोहर लगाना कोई बड़ी बात नहीं,
बदल सको तो बदल दो मेरे खयालों को।
मैं न अन्दर से समंदर हूँ न बाहर आसमान,
बस मुझे उतना समझ जितना नजर आता हूँ मैं।
हाथ में खंजर ही नहीं आँखों में पानी भी चाहिए,
हमें दुश्मन भी थोड़ा खानदानी चाहिए।